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Monday, September 29, 2025

*उत्तराखंड एवं उत्तरकाशी की संपूर्ण खबरों के लिए देखिए GANGA 24 EXPRESS (DIGITAL WEB NEWS CHANNEL) पर महेश बहुगुणा & टीम के साथ= 8126216516*

उत्तराखंड एवं उत्तरकाशी की संपूर्ण खबरों के लिए देखिए GANGA 24 EXPRESS (DIGITAL WEB NEWS CHANNEL) पर महेश बहुगुणा & टीम के साथ= 8126216516


*उत्तरकाशी प्रशासन की संपूर्ण खबरों के लिए देखिए GANGA 24 EXPRESS पर महेश बहुगुणा & टीम के साथ= 8126216516*

 🛑🛑 28 सितम्बर 2025

आज ट्रेक दी हिमलायाज (टीटीएच) के देहरादून कार्यालय से “ट्रेक ओफ़ दी ईयर 2025” के अंतर्गत चयनित गुलाबी कांठा ट्रेक (जिला उत्तरकाशी) का भव्य फ्लैग-ऑफ किया गया। इस अवसर पर उत्तराखण्ड पर्यटन सचिव श्री धीरेज गर्ब्याल ने हरी झंडी दिखाकर पहले दल को रवाना किया।
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी एक नये ट्रेक को “ट्रेक ओफ़ दी ईयर” के लिए चुना गया है। गुलाबी कांठा ट्रेक को चुनने का उद्देश्य उत्तराखण्ड में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देना, स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना तथा प्रदेश में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि करना है।
आज रवाना हुए पहले दल में 21 प्रतिभागी शामिल थे, जो देश के विभिन्न राज्यों से आए हैं। यह दल देहरादून से स्यानाचट्टी के लिए रवाना हुआ और कुल 6 दिन की गुलाबी कांठा ट्रेक यात्रा करेगा।
गुलाबी कांठा ट्रेक की विशेषता यह है कि इसे सालभर किसी भी मौसम में किया जा सकता है। आने वाले समय में यह ट्रेक बड़ी संख्या में देश-विदेश के ट्रेकर्स को आकर्षित करेगा और उत्तराखण्ड पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण बनेगा।
कार्यक्रम में पर्यटन एसीईओ श्री बंसी लाल राणा, जिला पर्यटन अधिकारी उत्तरकाशी  श्री कमल किशोर जोशी, पर्यटन प्रचार अधिकारी श्री उत्कर्ष, ट्रेक दी हिमलायाज के सीईओ श्री राकेश पंत एवं सह-संस्थापक श्री संदीप रावत, यूटीडीबी एडवेंचर लैंड एक्सपर्ट शीतल राज, एडवेंचर विंग की श्रीमती सीमा नौटियाल सहित अनेक यूटीडीबी  एवं ट्रेक दी हिमलायाज की टीम उपस्थित रही



मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा पारदर्शी और मेरिट-आधारित भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से बड़े पैमाने पर स्थाई नियुक्तियाँ की गई हैं।

#YouthEmpowerment
#Uttarakhand
#Employment
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा जनपद उत्तरकाशी का बगोरी गांव जिसे वाइब्रेंट विलेज के रूप में किया रहा विकसित।

#BagoriVillage 
#Uttarakhand
#VibrantVillage
#Uttarkashi
स्वास्थ्य विभाग उत्तरकाशी 
29 सितंबर 2025

> *" धौंतरी स्वास्थ्य शिविर में दून मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ चिकित्सको द्वारा 301 लोगों की स्वास्थ्य जांच।"*

> *"02 अक्टूबर तक स्वास्थ्य सेवा पखवाड़ा के अंतर्गत संचालित किए जाएंगे स्वास्थ्य शिविर।"* 


सोमवार को स्वास्थ्य सेवा पखवाड़ा के अवसर पर "स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान के तहत सुदूरवर्ती क्षेत्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धौंतरी में निशुल्क स्वास्थ्य शिविर का विधिवत शुभारंभ मुख्य अतिथि जिला पंचायत सदस्य प्रियंका रावत, क्षेत्र के अन्य जनप्रतिनिधि,  मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ बी एस रावत एवं अपर निदेशक प्रो रविन्द्र सिंह बिष्ट द्वारा किया गया।

इस अवसर पर राजकीय दून मेडिकल कॉलेज देहरादून की टीम में ईएनटी डॉ रविन्द्र सिंह बिष्ट, जनरल मेडिसिन विभाग डॉ. अरुण पांडेय, जनरल सर्जरी विभाग डॉ. गुलशेर, नेत्र रोग विभाग प्रो. (डॉ.) सुशील ओझा, अस्थि रोग विभाग डॉ.मानवेन्द्र सिंह रावत, मेडिसन विभाग डॉ राहुल आदि द्वारा गाजना क्षेत्र की आम जनता को चिकित्सा सेवाएं प्रदान की गई। 

निशुल्क स्वास्थ्य शिविर में 301 से अधिक लोगों का निशुल्क उपचार एवं जांच की गई। विशेषज्ञों चिकित्सकों द्वारा ई एन टी में 47  लोगों की वहीँ नेत्र रोग  में 31 लोगों, जनरल मेडिसन एवं फिजिशियन में कुल 135 लोगों, जनरल सर्जन विभाग में 30 लोगों , अस्थि रोग विभाग में 58 लोगों का निशुल्क उपचार किया गया। इसके अतिरिक्त जनपद की स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा 130 एनसीडी स्क्रीनिंग, टी बी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत 28 लोगों की स्क्रीनिंग की गई। साथ ही 15 लोगों द्वारा रक्तदान हेतु पंजीकरण करवाया गया।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा बताया गया कि स्वास्थ्य सेवा पखवाड़ा के अंतर्गत जनपद की समस्त चिकित्सा इकाइयों एवं आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में 02 अक्टूबर तक निशुल्क स्वास्थ्य शिविर नियमित रूप से आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इन स्वास्थ्य शिविरों का मुख्य उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्र के ग्रामीणों को नि:शुल्क परामर्श, प्रारंभिक उपचार, जाँच सुविधाएँ  उपलब्ध कराना एवं जनपद के अंतिम छोर तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ पहुंचाना है। 

चिकित्सा शिविर में स्वास्थ्य विभाग से जिला कार्यक्रम प्रबन्धक हरदेव सिंह राणा, अनिल बिष्ट, ज्ञानेंद्र पंवार, कमल भंडारी, रघुवीर कंडारी, मीनाक्षी, तरुण एवं स्थानीय जनप्रतिनिधि
ग्राम प्रधान धौतरी कुसुम बहुगुणा, तेजपाल रावत ग्राम प्रधान सीरी आदि उपस्थित रहे।
🛑 उत्तरकाशी,29 सितंबर 2025

*त्यौहारी सीजन में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के हेतु लिए जाए नियमित सैंपल : जिलाधिकारी*

जिलाधिकारी प्रशांत आर्य द्वारा सोमवार को खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन से संबंधित सुरक्षित भोजन एवं स्वस्थ आहार पर आधारित जनपद स्तरीय सलाहकार समिति की बैठक ली गयी ।
बैठक में जिलाधिकारी ने सुरक्षित भोजन और स्वस्थ आहार के लिए विभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा की तथा खाद्य सुरक्षा के विभिन्न मामलों में की गयी कार्यवाही की जानकारी प्राप्त की।
इस दौरान सदस्य सचिव सहायक आयुक्त खाद्य  सुरक्षा अश्वनी सिंह  द्वारा वर्ष 2025 में कुल 44 नमूने संग्रहित किए जाने ,  03 नमूने अधोमानक पाए  जाने एवं एक  वाद का निस्तारण कर 20000/ भी जुर्माना  लगाए जाने की जानकारी दी गयी। 
जिलाधिकारी ने इस दौरान खाद्य सुरक्षा के लिए समस्त आगनवाड़ी  और मिड डे मील विद्यालयों को पंजीकरण कराने के निर्देश दिए।
जिलाधिकारी ने विभाग को आगामी त्योहारों के सीजन के दृष्टिगत खाद्य पदार्थों के नमूने संग्रह करने तथा निरंतर निरीक्षण और निगरानी रखने के निर्देश दिये ।
बैठक के दौरान सीएमओ बीएस रावत, डीएसओ आशीष कुमार, मुख्य शिक्षाधिकारी अमित कोटियाल, जीएम उद्योग शैली डबराल सहित अन्य अधिकारी वीसी के माध्यम से जुड़े।

जिला सूचना अधिकारी 
उत्तरकाशी।

🛑 उत्तरकाशी, 29 सितंबर 2025

*जिलाधिकारी ने की केन्द्र पोषित योजना, राज्य सेक्टर और जिला योजना की प्रगति की समीक्षा*

*सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचने के लिए आयोजित करें बहुउद्देशीय शिविर:  डीएम*

 *आम व्यक्ति को सीधे लाभान्वित करने वाली योजनाओं को प्रभावित तरीके से क्रियान्वित करने के दिए निर्देश*

सोमवार को जिलाधिकारी प्रशांत आर्य की अध्यक्षता में जिला मुख्यालय के एनआईसी कक्ष में जिला योजना की प्रगति की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। बैठक में सभी अधिकारियों ने अपनी-अपनी विभागीय योजनाओं की अद्यतन स्थिति की जानकारी प्रस्तुत की।

जिलाधिकारी ने कहा कि जिला योजना के अंतर्गत स्वीकृत सभी कार्यों को तय समय सीमा में पूर्ण किया जाए, जिससे नागरिकों को समय पर योजनाओं का लाभ मिल सके। बैठक में लोक निर्माण विभाग, पेयजल निगम, जल संस्थान, शिक्षा विभाग, स्वस्थ्य, उद्यान, कृषि, सिंचाई  सहित अन्य विभागों के जिला योजना में आवंटित बजट और वर्तमान प्रगति की विस्तार से समीक्षा की गई।

जिलाधिकारी ने बैठक में जिला योजना के अतिरिक्त केन्द्र पोषित योजनाओं, राज्य सेक्टर द्वारा विभिन्न योजनाओं में आवंटित बजट की भी वर्तमान स्थिति की विस्तार से समीक्षा की। बैठक में समग्र शिक्षा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, पीएम कृषि सिंचाई योजना सहित अन्य योजनाओं की भी जानकारी ली।

जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने जनहित की प्राथमिकताए शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी योजनाओं को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए गए। जिलाधिकारी ने कहा कि जिन योजनाओं से सीधे आम व्यक्ति लाभान्वित होते हैं उनकी प्रगति में कोई शिथिलता नहीं होनी चाहिए।

बैठक में जिलाधिकारी ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का आमजन को अधिक से अधिक लाभ देने के लिए पूरे जिले में बहुउद्देशीय शिविर लगाने के निर्देश दिए जिसमें लोगों द्वारा अपने जरूरी कामों को करने के साथ ही विभिन्न योजनाओं के पात्र व्यक्तियों को लाभान्वित किया जाए।

बैठक में पीडी डीआरडीए अजय सिंह, एपीडी रमेश चन्द्र, जिल अर्थ एवं संख्याधिकारी अतुल आनंद, जिला समाज कल्याण अधिकारी सुधीर जोशी, मुख्य उद्यान अधिकारी रजनीश कुमार, जिला शिक्षा अधिकारी शैलेन्द्र अमोली, एसीएमओ बीएस पांगती सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।





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 *पुलिस व राजस्व की संयुक्त टीम ने 7 नाली भू-भाग पर उगी भांग को किया गया नष्ट*

ड्रग्स फ्री देवभूमि मिशन एवं नशामुक्त अभियान के अंतर्गत आज 28 सितम्बर 2025 को धरासू पुलिस टीम द्वारा राजस्व विभाग के साथ संयुक्त रुप से चौकी गेंवला व बनचौरा क्षेत्रान्तर्गत रोड किनारे उगी भांग को नष्ट किया गया। इस दौरान पुलिस व राजस्व की टीम द्वारा करीब 7 नाली ( 0.14 हेक्टेयर) भू-भाग पर उगी भांग को नष्ट किया गया। ग्रमीणों को नशे के दुष्प्रभाव के प्रति सजग किया गया। 






उत्तरकाशी पुलिस ने चलाया सत्यापन अभियान, 99 के किये पुलिस सत्यापन*

*किरायेदारों के सत्यापन न करवाने वाले 5 मकान मालिकों के खिलाफ पुलिस एक्ट में की कार्रवाई*

आपराधिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाने, संदिग्धों की निगरानी एवं बाहरी प्रान्तों से जनपद मे निवास रत व्यक्तियों के शत्-प्रतिशत पुलिस सत्यापन करवाये जाने को लेकर  *श्रीमती सरिता डोबाल, पुलिस अधीक्षक उत्तरकाशी* के निर्देशन में आज 28 सितम्बर 2025 को उत्तरकाशी पुलिस द्वारा विभिन्न थाना क्षेत्रान्तर्गत सत्यापन अभियान चलाया गया। इस दौरान पुलिस द्वारा बाहरी व्यक्तियों/किरायदारों /मजदूरों/ फड़-फेरी, रेड़ी/ठेले लगाने वाले *99 लोगों के सत्यापन* प्रपत्र भरकर जांच हेतु भेजे गये तथा *किरायेदारों के सत्यापन न कराने वाले 5 मकान मालिकों के विरुद्ध पुलिस एक्ट में कार्रवाई की गयी।* अभियान के दौरान पुलिस द्वारा सभी को किरायेदार, घरेलू नौकर, मजदूर आदि के शत–प्रतिशत सत्यापन करवाने हेतु जागरूक किया गया।







*थाना दिवस मे CO उत्तरकाशी द्वारा जनसमस्याओं को सुनने के साथ लोगों को साइबर, नशा व सामाजिक कुरीतियों के प्रति किया गया जागरुक।*

    आज 29 सितम्बर 2025 को कोतवाली मनेरी मे आयोजित “थाना दिवस” कार्यक्रम *पुलिस उपाधीक्षक उत्तरकाशी, श्री जनक सिंह पंवार* द्वारा वरिष्ठ नागरिकों, जनप्रतिनिधियों तथा गणमान्य लोगों को साइबर अपराध तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों के प्रति सजग किया गया। वरिष्ठ जनों तथा स्थानीय लोगों से संवाद करते हुये समस्याओं को सुना गया तथा प्रभावी पुलिस व्यवस्था का भरोसा दिया गया। सभी को वर्तमान परिदृश्य में साइबर ठगों से सचेत रहने की हिदायत देते हुये विभिन्न तरीकों के साइबर, बच्चों तथा महिलाओं से जुडे अपराध जानकारी देते हुये जागरुक किया गया तथा  साइबर हेल्पलाइन नम्बर 1930 व डायल 112 की उपयोगिता बताई गयी। 
    कार्यक्रम में *प्रभारी निरीक्षक श्री मनोज आसवाल*  द्वारा उपस्थित  लोगों को नशे के दुष्प्रभाव की व्यपाक जानकारी देते हुये बताया गया कि नशा, नाश की जड है। आये दिन युवा नशे की चपेट में आकर अपने जीवन तबाह कर देते हैं, नशे कुप्रचलन को रोकने के लिये सभी की सहभागिता जरुरी है, सभी अपने आस-पास की परिवेश के इस ओर जागरुक करने का प्रयास करें।
    इस दौरान *वरिष्ठ उपनिरीक्षक सुखपाल सिंह, मनेरी क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक, जनप्रतिनिधि, ग्राम चौकीदार एवं अन्य गणमान्य लोग*  उपस्थित रहे।





*पुलिस व राजस्व की संयुक्त टीम द्वारा UP/वन विभाग की लैंड पर उगी भांग को किया गया नष्ट*

ड्रग्स फ्री देवभूमि मिशन एवं नशामुक्त अभियान के अंतर्गत आज 29 सितम्बर 2025 को थानाध्यक्ष बडकोट श्री दीपक कठैत के देखरेख मे बडकोट पुलिस टीम द्वारा राजस्व विभाग के साथ संयुक्त रुप थाना बडकोट क्षेत्रान्तर्गत ग्राम पिंडकी के पायक तोक में करीब 20 नाली(0.4 हेक्टेयर) UP लैंड पर उगी भांग को नष्ट किया गया। 
वहीं थानाध्यक्ष मोरी श्री रणवीर सिंह चौहान के नेतृत्व मे मोरी पुलिस की टीम व ग्रम प्रहरियों द्वारा थाना मोरी क्षेत्रान्तर्गत किरोली गांव के लुवासू में स्थित छानियों के आस पास वन विभाग की लैंड पर उगी भांग को नष्ट किया गया। ग्रमीणों को नशे के दुष्प्रभाव के प्रति सजग किया गया। 



कल 29 सितम्बर 2025 की देर सांय को एक श्वान के उत्तरकाशी, केदार घाट के समीप भागीरथी नदी के किनारे फंसे होने की जानकारी मिलने पर प्रभारी अग्निशमन अधिकारी, खजान सिंह चौहान के नेतृत्व में फायर सर्विस उत्तरकाशी की टीम द्वारा तुरन्त घटनास्थल पर पहुंचकर कड़ी मशक्क़त के बाद रोप (रस्सी) की सहायता से श्वान को नदी के तेज प्रवाह से सुरक्षित रेस्क्यू किया गया।









*

जनपद अन्तर्गत वर्तमान में मार्गों की स्थिति का विवरण- दूरभाष से प्राप्त सूचना अनुसार।

 *1-* गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात हेतु सुचारू है।
 *2-* यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात हेतु सुचारू है।
 *3-* बड़कोट-डामटा-विकास नगर राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात हेतु सुचारू हैं।
 *4-* उत्तरकाशी-लम्बगांव-घनशाली तिलवाड़ा मोटर मार्ग यातायात हेतु सुचारू है।
 *5 -ऋषिकेश चंबा नरेंद्रनगर मोटर मार्ग यातायात हेतु सुचारू है।
 *6-* मसूरी सुवाखोली, मोरीयाना,मोटर मार्ग छोटे वाहनों हेतु सुचारू है

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*Sudhamani Idamannel aka Hugging Saint Mata Amritanandamayi*
    ( Janmam 27 September 1953 )

🏵 *सुधामणि इडमैन उर्फ़ 'हगिंग सेंट' माता अमृतानंदमयी* 🏵
              ( जन्म 27 सितंबर 1953 )
  सुधामणि इडमैन उर्फ़ माता अमृतानंदमयी का जन्म 27 सितंबर 1953 को केरल राज्य के कोल्लम जिले की अलाप्पाद पंचायत के अंतर्गत तटीय गाँव परायाकदवु में हुआ था। जन्म के समय, उसका नाम सुधामणि था, जिसका अर्थ अमृत आभूषण है।
   उनके पिता, सुगुनंदनंदन इडमैन मछली पकड़ने के व्यापार में लगे हुये थे, मछली बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। वह और उनकी पत्नी, दमयंती इदमैननेल से सात बच्चे थे, जिनमें से सुधामनी तीसरे स्थान पर पैदा हुई थीं। वह अपने जन्म से ही असाधारण साबित हुई।
     समय जैसे-जैसे बीतता गया, यह अधिक स्पष्ट हो गया कि सुधामनी बाकी लोगों से अलग थी, जब वह मुश्किल से छह महीने की थीं, तब उन्होंने बात करना और चलना सीखा। यहां तक ​​कि एक बच्चे के रूप में, वह भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित थी, संभवतः उनके परिवार के देवता थे और लगातार उनका नाम लेते देखा गया था।
     तीन साल की उम्र तक, वह लगातार भक्ति गीत गा रही थी, जिसे उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों या पड़ोसियों से सीखा होगा, जो उसके साथ सभी को खुश कर देता था। लेकिन दो साल के भीतर, जैसे-जैसे उसका आध्यात्मिक मिजाज बढ़ता गया, उसके माता-पिता उसके लिये चिंतित होते गये।
        हालाँकि सुधामणि अभी बहुत छोटी थीं किंतु उनका पूरा दिन अब घर की सफाई, बर्तन धोने, खाना बनाने और अपने परिवार का भरण पोषण करने में बीत जाता। घर की गाय की भी उनकी ज़िम्मेदारियाँ थीं और घास इकट्ठा करने के अलावा, वे घर-घर जाकर उनके लिये सब्जी के छिलके और चावल की खीर माँगती थीं।
      सब्जी के छिलकों को इकट्ठा करते समय, युवा सुधामणि ने देखा कि बहुत से लोग भोजन या दवाई के बिना भूखे या बीमार थे। उन्होंने यह भी देखा कि कैसे बड़ी पीढ़ी अपने परिवार से उपेक्षित थी।
      उन्होंने अब जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े दान करना शुरू कर दिया, शारीरिक रूप से उन लोगों की देखभाल करना जिनके पास उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। उसके माता-पिता, जो समान रूप से गरीब थे, दयालुता के उनके कृत्यों की सराहना नहीं कर सकते थे और इसके लिये उन्हें कड़ी सजा दी लेकिन उन्होंने अपनी सेवा जारी रखी।
      जब सेवा में दिन बीत रहे थे, उन्होंने गहन ध्यान में रातें बिताईं। जैसे-जैसे वे अपनी किशोरावस्था में पहुँची, उसकी आध्यात्मिक खोज और अधिक तीव्र होती गई। उन्हें ठीक करने के लिये जिसे उनके माता-पिता पागलपन समझते थे, उन्होंने एक रिश्तेदार के यहाँ भेज दिया, जहाँ उन्हें लगातार काम में व्यस्त रखा जाता था।
   उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की; लेकिन तब तक सुधामणि ने अपने लिये एक अलग जीवन जीने का फैसला कर लिया इसलिये उन्होंने शादी करने से इंकार कर दिया। यद्यपि इसने उनके माता-पिता को क्रोधित कर दिया।
   सितंबर 1975 में एक दिन, जब वह घास की एक गठरी के साथ घर लौट रही थी, उसने पड़ोस के घर ने श्रीमत भागवतम का पाठ किया। इसके अंत में, जैसे ही भक्तों ने भगवान की स्तुति में गीत गाना शुरू किया, घर के अंदर भागते हुए, वह भक्तों के बीच में, श्री कृष्ण के विचारों में पूरी तरह से डूब गई। उसके साथ वह महसूस कर रहीं थीं कि वह स्वचालित रूप से भगवान की मुद्राओं को ले रही हैं।
       अब से, वह भगवान कृष्ण के साथ पहचानी गई, बहुत बार गहरी समाधि में चली गई। अन्य समय में, 'कृष्ण भाव' में डूबे हुये, उन्होंने नृत्य किया और गाया, अपने आध्यात्मिक अनुभवों को दूसरों के साथ छिपाये रखने का ख्याल रखा।
      यह ठीक से ज्ञात नहीं कि कब, लेकिन बहुत जल्द, सुधामनी ने अपने में सार्वभौमिक माँ की उपस्थिति का अनुभव किया। उस दिन से, वह अपने आस-पास की हर चीज को अपने, आत्मन के रूप में देखने लगी। वह अब ’अमृता’ बन गई, दिव्य अमृत, जिसने संपूर्ण मानव जाति को अपने स्वयं के रूप में गले लगा लिया।
      उनके प्यार और करुणा ने बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करना शुरू कर दिया, जो उनके साथ कुछ मिनट बिताने के लिये दूर-दूर से आते थे। जब उन्होंने अपनी चमत्कारी शक्ति से उनके दुख को कम किया, तो वह उन्हें सही रास्ते पर चलने में अधिक दिलचस्पी दिखा रही थी।
     1979 से, अधिक गंभीर आध्यात्मिक साधक, मठवासी जीवन जीने का इरादा रखते हुये, उनके पास आने लगे। पहले आने वालों में बालू नामक एक युवा लड़का था, जिसे बाद में ब्रह्मचारी अमृतमय चैतन्य के नाम से जाना गया। अपनी माता अमृतानंदमयी को बुलाकर, उन्होंने अपने माता-पिता की सम्पत्ति में रहना शुरू कर दिया।
      1981 में, सुगुनंदनंदन इदमनेल की अनुमति के साथ, उन्होंने उस संपत्ति पर कुछ थोड़े से कॉटेज का निर्माण किया। इस प्रकार की नींव रखी गई, जिसे बाद में माता अमृतानंदमयी मठ (एमएएम) के रूप में जाना जाने लगा।
    उनकी प्रसिद्धि तब तक विदेशों में फैलने लगी और 1986 में, उन्होंने एक सभा को बताया कि उनके पूरे विश्व में बच्चे हैं और वे उनके लिए रो रही थीं। अगले वर्ष में, कुसुमा ग्रेटेन वेंकटेश के निमंत्रण पर, उन्होंने कैलिफोर्निया का दौरा किया। यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी।
     1989 में उन्होंने ब्रह्मचारी अमृतमय चैतन्य की शुरुआत 'संन्यास' में की, जिससे उन्हें स्वामी अमृतस्वरुपानंद पुरी का संन्यास नाम मिला। उस दिन इकट्ठे भक्तों को अपने संबोधन में उन्होंने अपने बेटे को दुनियाँ की सेवा में समर्पित करने में सक्षम होने पर प्रसन्नता व्यक्त की।
      उन्होंने तब से मानव जाति के भले के लिये उन्हें समर्पित करते हुये संन्यास ’के पवित्र क्रम में कई और पहल की हैं। समवर्ती रूप से, वह दुनियाँ भर में लाखों घरवालों के लिये 'अम्मा' बनी रही।
    उनसे जो कोई भी मिलने जाता है वह हमेशा गर्मजोशी से गले मिलता है। यह तब शुरू हुआ, जब करुणा से बाहर, उन्होंने एक भक्त को गले लगाया, जो रोते हुये उसकी गोद में गिर गया। यह देखकर, अन्य लोग भी गले मिलना चाहते थे और इस तरह से परंपरा का जन्म हुआ। 'हगिंग सेंट' के नाम से मशहूर, उसने दुनिया भर में 33 मिलियन से अधिक लोगों को गले लगाया है।
     माता अमृतानंदमयी का मानना ​​है कि जिस तरह एक पक्षी को उड़ान भरने के लिये दो पंखों और एक पूंछ की जरूरत होती है, वैसे ही साधक को परम आनंद की प्राप्ति के लिए भक्ति (भक्ति), कर्म (कर्म) और ज्ञान (ज्ञान) का अभ्यास करना चाहिये। इसलिये, ध्यान और भजन के साथ, उन्होंने अपने शिष्यों को मानव जाति की सेवा के लिये समर्पित किया।
      1997 में, उन्होंने पूरे भारत में बेघरों के लिये 25,000 घर बनाने के उद्देश्य से एक आवास कार्यक्रम, अमृता कुटीरम का शुभारंभ किया। एक बार 2002 में प्रारंभिक लक्ष्य प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पूरे भारत में अधिक घरों का निर्माण जारी रखा।
     1998 में, उन्होंने अमृता निधि को लॉन्च किया, जो एक कार्यक्रम है शारीरिक और मानसिक रूप से वंचित व्यक्तियों और विधवाओं को 50,000 की मासिक पेंशन प्रदान करता है। उसी वर्ष, उनकी प्रेरणा पर कोच्चि में द अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIMS) या 'अमृता हॉस्पिटल' शुरू किया गया था।
       2001 से  स्वयंसेवकों और आवश्यक संसाधनों को भेजना शुरू कर दिया है जहाँ प्राकृतिक आपदा या अन्य प्रकार की आपदायें हैं।
      अम्मा ग्रामीण भारत में स्वच्छता और स्वच्छता की कमी के बारे में भी जागरूक हैं। 2012 से, उनकी संस्था ने पम्पा नदी और सबरीमाला मंदिर तीर्थ स्थल की सफाई का एक वार्षिक कार्यक्रम शुरू किया है।
      2015 में, उन्होंने गंगा नदी के किनारे रहने वाले गरीब परिवारों के लिये शौचालय निर्माण के लिये भारत सरकार को USD15 मिलियन का दान दिया। उसी वर्ष, उन्होंने केरल राज्य में शौचालय निर्माण के लिये एक और USD 15 मिलियन देने का भी वादा किया।
       इन वर्षों में, अम्मा को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से कई पुरस्कार मिले हैं। उनमें से प्रमुख हैं, हिंदू धर्म टुडे (1993) से हिंदू पुनर्जागरण पुरस्कार और द वर्ल्ड मूवमेंट फॉर नॉनविलेन्स (यूएन, जिनेवा, 2002) से गैर-हिंसा के लिये गांधी-राजा पुरस्कार।
       1993 में, शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद द्वारा माता अमृतानंदमयी को 'हिंदू आस्था का राष्ट्रपति' चुना गया था।
2010 में द स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क ने अम्मा को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
      2012 में, माता अमृतानंदमयी को दुनियाँ के शीर्ष 100 सबसे आध्यात्मिक रूप से प्रभावशाली रहने वाले वॉटकिंस की सूची में शामिल किया गया था।
      2014 में, अमेरिकी उदारवादी वेबसाइट, द हफ़िंगटन पोस्ट ने उन्हें 50 सबसे शक्तिशाली महिला धार्मिक नेताओं की सूची में शामिल किया।
       गरीबों के लिये घर क्रम में जो मकान बनाये गये उनमें एक आश्रम हमारे सिद्धार्थ विहार डीपीएस के निकट, गाजियाबाद में काफी पहले से है।
     Obeisance to H. H. Hugging Saint Mātā AMRITANANDAMAYI DEVI , born Sudhamani Idamannel better known simply as AMMA "Mother", the Hindu Spiritual Leader and Guru, who is revered as a saint by her followers, on Her Janmadhinam today.
       Amritanandamayi is an Indian Guru from Parayakadavu (now partially known as Amritapuri), Alappad Panchayat, Kollam District, in the state of Kerala. 
     Born to a family of fishermen in 1953, Amritanandamayi was the third child of Sugunanandan and Damayanti. She has six siblings. Her favourite god was Krishna. She started praying, crying and shedding tears seeking the darshan of Krishna and she composed and sang impromptu several devotional songs on Lord Krishna right from childhood.
      Her education ended at the age of nine, when she began to take care of her younger siblings and the family domestic work full-time.
      As part of her chores, Amritanandamayi gathered food scraps from neighbours for her family's cows and goats, through which she was confronted with the intense poverty and suffering of others. She would bring these people food and clothing from her own home. Her family, which was not wealthy, scolded and punished her. Amritanandamayi also began to spontaneously embrace people to comfort them in their sorrow. But despite the reaction of her parents, Amritanandamayi continued. Regarding her embracing of others, Amritanandamayi commented, “I don’t see if it is a man or a woman. I don’t see anyone different from my own self. A continuous stream of love flows from me to all of creation. This is my inborn nature. The duty of a doctor is to treat patients. In the same way, my duty is to console those who are suffering.”
       Despite numerous attempts by her parents to arrange her marriage, Amritanandamayi rejected their efforts. In 1981, after various seekers had begun residing at her parents' property in Parayakadavu in the hopes of becoming Amritanandamayi's disciples, the Mata Amritanandamayi Math (MAM), a worldwide foundation, was founded. Amritanandamayi serves as chairperson of the Math. Today the Mata Amritanandmayi Math is engaged in many spiritual and charitable activities.
      In 1987, at the request of devotees, Amritanandamayi began to conduct programs in countries throughout the world. She has done so annually ever since.
      Awards and Honours
1993, 'President of the Hindu Faith' (Parliament of the World's Religions)
1993, Hindu Renaissance Award (Hinduism Today)
1998, Care & Share International Humanitarian of the Year Award (Chicago)
2002, Karma Yogi of the Year (Yoga Journal)
2002, Gandhi-King Award for Non-Violence by The World Movement for Nonviolence (UN, Geneva)
2005, Mahavir Mahatma Award (London)
2005, Centenary Legendary Award of the International Rotarians (Cochin)
2006, James Parks Morton Interfaith Award (New York)
2006, The Philosopher Saint Sri Jnaneswara World Peace Prize (Pune)
2007, Le Prix Cinéma Vérité (Cinéma Vérité, Paris)
2010, The State University of New York awarded Amma an honorary doctorate in humane letters on 25 May 2010 at its Buffalo campus.
2012, Amma featured in the Watkins' list of the top 100 most spiritually influential living people in the world.
2013, Awarded first Vishwaretna Purskar (Gem of the Word Award) by Hindu Parliament on 23 April 2013 at Tiruvananthapuram (India)
2013, Awarded proclamation on behalf of the State of Michigan to Amma commemorating Amma’s 60th birthday, the official proclamation describes Amma as a true citizen of the world and recognizes Amma’s charitable works worldwide.
2014, Chosen as one among the 50 most powerful women religious leaders by The Huffington Post.
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*"The Father of the Indian Renaissance" — Raja Ram Mohan Roy.*
 ( Born : 22 May 1772 – Died :  27 September 1833 )

*सुप्रसिद्ध समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी बहुभाषाविद् सुधारवादी पत्रकार, और शिक्षाविद् और आधुनिक भारतीय समाज के जन्मदाता राजा राम मोहन (राय) रॉय*
  ( जन्म : 22 मई 1772 - निधन : 27 सितंबर 1833 )
    राजा राममोहन (राय) रॉय को *'आधुनिक भारतीय समाज का जन्मदाता'* कहा जाता है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। 
  धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है। राजा राम मोहन राय ने तत्कालीन भारतीय समाज की कट्टरता, रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वासों को दूर करके उसे आधुनिक बनाने का प्रयास किया।
   उन्होंने अपने जीवन में अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और सूफ़ी धर्म का भी उन्होंने गम्भीर अध्ययन, चिंतन और मनन किया था। 
  17 वर्ष की अल्पायु में ही वे मूर्ति पूजा विरोधी हो गये थे। वे अंग्रेज़ी भाषा और सभ्यता से काफ़ी प्रभावित थे। उन्होंने इंग्लैंड की यात्रा की। धर्म और समाज सुधार उनका मुख्य लक्ष्य था। *वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास और कर्मकांडों के विरोधी थे*। अपने विचारों को उन्होंने लेखों और पुस्तकों में प्रकाशित करवाया। 
   हिन्दू और ईसाई प्रचारकों से उनका काफ़ी संघर्ष हुआ, परन्तु वे जीवन भर अपने विचारों का पुरजोर समर्थन करते रहे और उनके प्रचार के लिए उन्होंने ब्रह्मसमाज की स्थापना की।
          *युवावस्था में ही मूर्तिपूजा खंडन*
 वे जब  मुश्किल से 15 वर्ष के थे तब उन्होंने बंगाल में एक छोटी सी पुस्तिका लिखी थी जिसमें उन्होंने मूर्तिपूजा का खंडन किया था जिसके सम्बंध में उनका कहना था कि —  *" वह वेदों में नहीं है। "* नवयुवक राममोहन को इसके लिये बहुत कष्ट उठाने पड़े। यद्यपि उन्हें कट्टरवादी धार्मिक परिवार से निकाल दिया गया और उन्हें देश निकाले के रूप में अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा तथापि उन्होंने ईश्वर प्रदत्त परिस्थितियों से पूर्ण लाभ उठाया। उन्होंने दूर दूर तक यात्रायें की और इस प्रकार बहुत सा ज्ञान और अनुभव संचित किया। 
  राममोहन राय को मूर्तिपूजा एवं परम्पराओं के विरोध के कारण अपना घर भी छोड़ना पड़ा था। उन्होंने तिब्बत यात्रा की तो उनके क्रान्तिकारी विचारों के कारण वहाँ के लामा भी उनके विरोधी हो गये। वे अरबी और फ़ारसी पहले से ही जानते थे, अब उन्होंने संस्कृत की भी योग्यता प्राप्त कर ली। उन्होंने अंग्रेज़ी, फ्रेंच, लैटिन, हिब्रू और ग्रीक का भी कुछ ज्ञान प्राप्त कर लिया।     
    एकेश्वरवादी राममोहन राय ने जैन, इस्लाम आदि धर्मों का अध्ययन किया था। वे संसार के महत्त्वपूर्ण धर्मग्रंथों का मूल रूप में अध्ययन करने में समर्थ थे। इस कारण वे संसार के सब महत्त्वपूर्ण धर्मों की तुलना करने में सफल हो गये। *विश्वधर्म की उनकी धारणा किन्हीं संश्लिष्ट सिद्धांतों पर आधारित नहीं थी अपितु विभिन्न धर्मों के गम्भीर ज्ञान पर ही आधारित थी। उन्होंने वेदों और उपनिषदों का बाँग्ला अनुवाद किया। वेदान्त के ऊपर अंग्रेज़ी में लिखकर उन्होंने यूरोप तथा अमेरिका में भी बहुत ख्याति अर्जित की।*
    
*चिंतन और चेतना तजकर सोये अगर जगाना ईश्वर*।
       *मन जब दंभी हो कर पथ से भटके राह दिखाना ईश्वर*।।

*विनती है संभव अतिवादी पन से सदा बचाना ईश्वर*।
       *मन जब दंभी हो कर पथ से भटके राह दिखाना ईश्वर*।।

*मिथ्या शंकित करे कभी तो सच का बोध कराना ईश्वर*।
       *मन जब दंभी हो कर पथ से भटके राह दिखाना ईश्वर*।।

*भय लालच वश कर्म ज्योति बुझने लगे जलाना ईश्वर*।
       *मन जब दंभी हो कर पथ से भटके राह दिखाना ईश्वर*।।

*आवागमन मुक्त  कर    देना ठौर  ठिकाना  ईश्वर*।
       *मन जब दंभी हो कर पथ से भटके राह दिखाना ईश्वर*।।
        1823 में लॉर्ड एमहर्स्ट को राममोहन रॉय के ऐतिहासिक पत्र ने भारत में आधुनिक अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत की। इन्हें भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।
   राजा राम मोहन रॉय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली में हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता रामकांतो राॅय संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा के प्रकांड विद्वान थे जो अरबी, लैटिन और ग्रीक भी जानते थे। इनके शुरुआती जीवन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है लेकिन व्यापक रूप से यह माना जाता है कि वे काफी यात्रा कर चुके थे।
   रॉय ने अपने पूरे जीवन में विभिन्न पदों पर काम किया। देश में प्रचलित समस्याओं को देखते और भुगतते हुये उन्होंने देश में सुधार की पहली लहर का नेतृत्व किया। उन्होंने मुर्शिदाबाद में एक मुंशी के रूप में और बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में एक अधिकारी के सहायक के रूप में काम किया। 1829 में दिल्ली के मुगल शासक ने उन्हें राजा की डिग्री दी थी हालाँकि अंग्रेजों ने इसे मान्यता नहीं दी थी।
    रॉय को जहाँ *भारत में सती और बाल विवाह की सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में निभाई गई भूमिका के लिये याद किया जाता है वहीं शैक्षिक सुधार में भी उनका एक प्रमुख नाम था।*
       उन्होंने 1821 में पहला बंगाली भाषा बाँग्ला का साप्ताहिक समाचार पत्र और एक भारतीय भाषा में पहला समाचार पत्र शुरू किया जिसे संवाद कमुदी कहा जाता है। साप्ताहिक समाचार पत्र ने पाठकों में चर्चा के महत्व के साथ-साथ शिक्षा की सभी आवश्यकताओं की घोषणा की। 1822 में उन्होंने एक फ़ारसी पत्रिका, *मिरात-उल-अकबर* भी प्रकाशित की।
   इनके उक्त पत्र के आलोक में 07 मार्च 1835 को लार्ड बेंटिक ने भारत में देशी आबादी के बीच यूरोपीय साहित्य और विज्ञान को बढ़ावा देने और अंग्रेजी शिक्षा के लिये धन की घोषणा करते हुये प्रस्ताव पारित किया था।
   राजा राममोहन राॅय को आधुनिक भारत और बंगाल के नवयुग का जनक कहा जाता है । उन्होंने पारम्परिक हिन्दू परम्पराओं को तोड़ते हुए महिलाओं और समाज के हितों में कई सामाजिक कार्य किये। हालाँकि भारत के इतिहास में उनकी पहचान देश में सती प्रथा के विरोध करने वाले प्रथम व्यक्ति के रूप दर्ज हैं लेकिन इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे कार्य हैं जिनके कारण राजा  राम मोहन राय को आज भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ये न केवल महान शिक्षाविद् थे बल्कि एक विचारक और प्रवर्तक भी थे। ये कलकत्ता के एकेश्वरवादी समाज के संस्थापकों में से भी एक थे। उस समय जब भारतीय संस्कृति और भाषा को ही सम्मान दिया जाता था तब ये इंग्लिश, विज्ञान, वेस्टर्न मेडिसिन और टेक्नोलॉजी जैसे नवीन विषयों के अध्ययन के पक्षधर बने ।
                      *जन्म और परिवार* 
  राजा राममोहन राॅय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हूगली जिले के राधानगर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामकांतो रॉय और माता का नाम तारिणि था । राम मोहन का परिवार वैष्णव था जो कि धर्म सम्बन्धित मामलो में बहुत कट्टर था ।
तत्कालीन प्रचलन के मुताबिक  इनकी शादी 09 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई लेकिन इनकी प्रथम पत्नी का जल्द ही देहांत हो गया जिसके बाद 10 वर्ष की उम्र में उनकी दूसरी शादी की गयी जिससे इनके 2 पुत्र हुए लेकिन 1826 में इस पत्नी का भी देहांत हो गया और इसके बाद इनकी तीसरी पत्नी भी ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकीं ।
                           *शिक्षा*
इनकी विद्वता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 15 वर्ष की उम्र तक इन्होंने बाँग्ला, पर्शियन, अरेबिक और संस्कृत जैसी भाषायें बख़ूबी सीख ली थीं ।
  इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत और बंगाली भाषा में गाँव के स्कूल से ही की लेकिन बाद में उन्हें पटना, बिहार के मदरसा में भेज दिया गया जहाँ इन्होंने अरेबिक और पर्शियन भाषा सीखी। इन्होंने 22 की उम्र में इंग्लिश भाषा सीखी थी जबकि संस्कृत के लिये ये काशी तक गये थे जहाँ इन्होंने वेदों और उपनिषदों का अध्ययन किया। इन्होंने अपने जीवन में बाइबिल के साथ ही कुरान और अन्य इस्लामिक ग्रन्थों का अध्ययन भी किया ।
                     *विद्रोही जीवन*
  राजा राममोहन राॅय हिन्दू पूजा पद्धति और परम्पराओं के खिलाफ थे। इन्होंने समाज में फैले कुरीतियों और अंध-विश्वासों का पूरजोर विरोध किया था यद्यपि इनके पिता एक पारम्परिक और कट्टर वैष्णव ब्राह्मण धर्म का पालन करने वाले थे। मात्र 14 वर्ष की उम्र में इन्होंने सन्यास लेने की इच्छा व्यक्त की लेकिन उनकी माँ ने ये बात नहीं मानी । परम्परा विरोधी पथ पर चलने और धार्मिक मान्यताओं का विरोध करने के कारण पिता-पुत्र के बीच में मतभेद रहने लगे और झगड़ा बढ़ता देखकर इन्होंने अपना घर छोड़ दिया और ये हिमालय और तिब्बत की तरफ चले गये।
   घर वापस लौटने से पहले राजा राममोहन राॅय ने बहुत भ्रमण किया और देश दुनियाँ के साथ सनातन सत्य को भी गहराई से जाना-समझा। इससे धर्म के प्रति इनकी जिज्ञासा अधिक बढ़ने लगी फिर भी घर लौट आये।
     इनके परिवार ने जब इनकी शादी करवाई थी तब इनके परिवारजनों को लगा था कि शादी के बाद ये अपने विचार बदल लेंगे लेकन विवाह और वैवाहिक जिम्मेदारियों ने उन पर कोई असर नहीं डाला। विवाह के बाद भी उन्होंने वाराणसी जाकर उपनिषद और हिन्दू दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया लेकिन जब उनके पिता का देहांत हुआ तो 1803 में ये मुर्शिदाबाद लौट आये।
                             *कॅरियर* 
पिता की मृत्यु के बाद कलकता में ही ये जमींदारी का काम देखने लगे। 1805 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक निम्न पदाधिकारी जॉन दिग्बॉय ने इन्हें पश्चिमी सभ्यता और साहित्य से परिचय करवाया। अगले 10 साल तक इन्होंने दिग्बॉय के सहायक ( असिस्टेंट ) के रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी में काम किया जबकि 1809 से लेकर 1814 तक इन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी के रेवेन्यु डिपार्टमेंट में काम किया।
             *वैचारिक क्रान्ति का सफर* 
  1803 में राजा राममोहन राॅय ने हिन्दू धर्म और इसमें शामिल विभिन्न मतों में अंध-विश्वासों पर अपनी राय रखी। इन्होंने एकेश्वर वाद के सिद्धांत का अनुमोदन किया जिसके अनुसार एक ईश्वर ही सृष्टि का निर्माता है। इस मत को वेदों और उपनिषदों द्वारा समझाते हुये उन्होंने इनकी संस्कृत भाषा को बंगाली, हिंदी और इंग्लिश में अनुवाद किया। इनमें रॉय ने समझाया कि एक महाशक्ति है जो कि मानव की जानाकरी से बाहर है और इस ब्रह्मांड को वही चलाती है ।
   फलतः 1814 में इन्होंने आत्मीय सभा की स्थापना की। वास्तव में आत्मीय सभा का उद्देश्य समाज में सामजिक और धार्मिक मुद्दों पर पुन: विचार कर परिवर्तन करना था ।
 इन्होंने महिला अधिकारों की रक्षा के लिए कई मुहिम चलाई जिनमें विधवा विवाह और महिलाओं को जमीन सम्बन्धित हक़ दिलाना उनके मुख्य उद्देश्यों  थे। उनकी पत्नी की विधवा बहिन जब सती हुयी तो ये बहुत विचलित हो गये थे। इस कारण इन्होंने सती प्रथा का कठोर विरोध किया।  बाल विवाह, बहु-विवाह के भी ये घोर विरोधी थे।
   इन्होंने शिक्षा को समाज की आवश्यकता माना और महिला शिक्षा के पक्ष में भी कई कार्य किये थे। इनका मानना था कि इंग्लिश भाषा भारतीय भाषाओं से ज्यादा समृद्ध और उन्नत है। सरकारी स्कूलों को संस्कृत के लिये मिलने वाले सरकारी फण्ड का भी विरोध किया था। फलतः 1822 में उन्होंने इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना की थी।
 इनके सती प्रथा के विरोध में चलाये जाने वाले अभियानों के प्रयास को तब सफलता मिली जब 1829 में सती प्रथा पर रोक लगा दी गई।
   ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिये काम करते हुये ये इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इन्हें वेदांत के सिद्धांतों को पुन: परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि पश्चिमी और भारतीय संस्कृति का संगम हो सके।
    ब्रिटिश राज के चलते देश उस समय बहुत सी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था । ऐसे में  इन्होंने समाज के कई क्षेत्रों में अपना योगदान दिया था जिन्हें विस्तार से निम्न मुद्दों के अंतर्गत समझा जा सकता है :
                    *शैक्षणिक योगदान*
 राजा राममोहन राॅय ने इंग्लिश स्कूलों की स्थापना के साथ ही कलकता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना भी की जो कि’ कालान्तर में देश का बेस्ट शैक्षिक संस्थान बन गया । रॉय ने विज्ञान के सब्जेक्ट्स जैसे फिजिक्स, केमिस्ट्री और वनस्पति शास्त्र को प्रोत्साहान दिया था। वे चाहते थे कि देश के युवा और बच्चे नयी से नयी तकनीक की जानकारी हासिल करें । इसके लिये यदि स्कूल में इंग्लिश भी पढ़ना पड़े तो ये बेहतर हैं। उनका मानना था कि भारतीय यदि गणित, ज्योग्राफी, जियोग्राफी और लैटिन नहीं पढेंगे तो बहुत पीछे रह जायेंगे। सरकार ने इनका आइडिया एक्सेप्ट कर लिया लेकिन उनकी मृत्यु तक इसे लागू नहीं किया जा सका। राम मोहन ने सबसे पहले अपनी मातृभाषा के विकास पर ध्यान दिया। इनका गुडिया व्याकरण बंगाली साहित्य की अनुपम कृति है। *रबिन्द्र नाथ टेगोर और बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्य ने भी इनके पद चिन्हों का अनुकरण किया ।*
                *वेस्टर्न शिक्षा की वकालत*
जैसा कि पहले भी बताया कि  इनकी कुरान, उपनिषद, वेद, बाइबल जैसे धार्मिक ग्रंथों पर भी बराबर की पकड़ थी । ऐसे में इन सबको समझते हुये इनका दूसरी भाषा के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक था। ये इंग्लिश के माध्यम से भारत का विज्ञान में वैचारिक और सामाजिक विकास देख रहे थे।
    इनके समय में जब प्राचिविद और पश्चिमी सभ्यता की जंग चल रही थी तब इन्होंने इन दोनों के संगम के साथ आगे बढ़ने की इच्छा जाहिर की। इन्होंने जहाँ फिजिक्स, मैथ्स, बॉटनी, फिलोसफी जैसे विषयों को पढ़ने को कहा वहीं वेदों और उपनिषदों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता बताई ।
   राजा राममोहन राॅय ने लार्ड मेक्ले का भी सपोर्ट किया जो कि भारत की शिक्षा व्यवस्था बदलकर इसमें इंग्लिश को डालने वाले व्यक्ति थे । उनका उद्देश्य भारत को प्रगति की राह पर ले जाना था । हालाँकि ये 1835 तक भारत में प्रचलन में आई इंग्लिश के एजुकेशन सिस्टम को देखने के लिए जीवित नहीं रहे लेकिन इस बात को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि इस दिशा  में कोई सकारात्मक कदम उठाने वाले पहले विचारकों में से वे भी एक थे ।
           *भारतीय पत्रकारिता के जनक* 
  भारत की पत्रकारिता में इन्होंने बहुत योगदान दिया और ये अपने सम्पादकीय में देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और अन्य समस्याओं पर लिखा करते थे जिससे जनता में जागरूकता आने लगी। इनका लेखन लोगों पर गहन प्रभाव डालता था। ये अपना विचार बंगाली और हिंदी के समान ही इंग्लिश में भी तीक्ष्णता से रखते थे जिससे उनकी बात सिर्फ आम जनता तक नहीं बल्कि तब के प्रबुद्ध और अंग्रेजी हुकुमत तक भी पहुँच जाती थी।
    उनके लेखन की प्रशंसा करते हुए रॉबर्ट रिचर्ड्स ने लिखा *“राममोहन का लेखन ऐसा है जो उन्हें अमर कर देगाऔर भविष्य की जेनेरेशन को ये हमेशा अचम्भित करेगा कि एक ब्राह्मण और ब्रिटेन मूल का ना होते हुए भी वो इतनी अच्छी इंग्लिश में कैसे लिख सकते हैं”*
                      *आर्थिक विचार*  
आर्थिक क्षेत्र में इनके विचार स्वाधीन थे। ये प्रत्येक आम व्यक्ति की प्रॉपर्टी की रक्षा के लिए सरकार का हस्तक्षेप चाहते थे । इनके आर्टिकल्स भी हिन्दुओं के अपने पैतृक सम्पति के अधिकारों की रक्षा पर हुआ करते थे । इसके अलावा इन्होंने जमीन के मालिकों, जिन्हें तब जमींदार कहा जाता था, से किसानों के हितों को बचाने के लिए भी सरकारी हस्तक्षेप का आग्रह किया करते थे । ये  लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा दिये गये 1973 परमानेंट सेटलमेंट के खतरे से वाकिफ थे इसलिये ये ब्रिटिश सरकार से यह अपेक्षा करते थे कि वे किसानों को जमींदारो से बचाये। इन्होंने जमीन सम्बन्धित मामलों में महिला अधिकारों की रक्षा का भी पुरजोर समर्थन किया था।
            *अंतरराष्ट्रीयवाद के चैंपियन*
रविन्द्र नाथ टैगोर ने भी यह कमेंट किया था कि *”राममोहन ही वे व्यक्ति हैं जो कि आधुनिक युग को समझ सकते हैं । वे जानते थे कि आदर्श समाज की स्थापना स्वतन्त्रता को खत्म कर किसी का शोषण करने से नहीं की जा सकती बल्कि भाईचारे के साथ रहकर एक-दुसरे की स्वतन्त्रता की रक्षा करने से ही एक समृद्ध और आदर्श समाज का निर्माण होगा”* । वास्तव में राममोहन युनिवर्सल धर्म, मानव सभ्यता के विकास और आधुनिक युग में समानता के पक्षधर थे।
                 *राष्ट्रवाद के जनक* 
 ये व्यक्ति की राजनीतिक स्वतन्त्रता के भी पक्षधर थे । 1821 में उन्होंने जे.एस. बकिंघम को लिखा जो कि कलकता जर्नल के एडिटर थे कि वे यूरोप और एशियन देशों की स्वतन्त्रता में विश्वास रखते हैं । जब चार्ल्स एक्स ने 1830 की जुलाई क्रान्ति में फ्राँस पर कब्ज़ा कर लिया तब राजा राममोहन राॅय बहुत खुश हुये।
     राजा राममोहन राॅय ने भारत की स्वतंत्रता और इसके लिये एक्शन लेने के बारे में सोचने को भी कहा। इस कारण ही उन्होंने 1826 में आये जूरी एक्ट का विरोध भी किया। जूरी एक्ट में धार्मिक विभेदों को कानून बनाया गया था । इन्होंने इसके लिए जे-क्रावफोर्ड को एक लेटर लिखा । इनके एक दोस्त के अनुसार उस लेटर में इन्होंने लिखा : *“ भारत जैसे देश में यह सम्भव नहीं कि आयरलैंड के जैसे यहाँ किसी को भी दबाया जाये ”* इससे यह पता चलता है कि इन्होंने भारत में राष्ट्रवाद का पक्ष रखा । इसके बाद उनका अकबर के लिए लंदन जाना भी राष्ट्रवाद का ही एक उदाहरण है।
                      *सामाजिक सुधार*
                            *सती प्रथा*
  भारत में उस समय सती प्रथा का प्रचलन था। ऐसे में इनके अथक प्रयासों से गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक ने इस प्रथा को रोकने में राजा राममोहन राॅय की सहायता की। इन्होंने ही बंगाल सती रेगुलेशन या रेगुलेशन 17 ईस्वी 1829 के बंगाल कोड को पास कियाजिसके अनुसार बंगाल में सती प्रथा को क़ानूनी अपराध घोषित किया गया ।
    सती प्रथा के अंतर्गत किसी महिला के पति की मृत्यु के बाद महिला भी उसकी चिता में बैठकर जल जाया करती थी। इस मरने वाली महिला को सती कहा जाता था। इस प्रथा का उद्भव देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न कारणों से हुआ था लेकिन 18 वीं शताब्दी में इस प्रथा ने जोर पकड़ लिया था। इस प्रथा को ब्राह्मण और अन्य सवर्णों ने प्रोत्साहन दिया। राजा राममोहन राॅय इसके विरोध में इंग्लैंड तक गये और  इस परम्परा के खिलाफ सर्वोच्च न्यायायलय में इसके खिलाफ गवाही भी दी ।
                    *मूर्ति पूजा का विरोध*
राजा राममोहन राय ने मूर्ति पूजा का भी खुलकर विरोध कियाऔर एकेश्वरवाद के पक्ष में अपने तर्क रखे। उन्होंने “ट्रिनीटेरिएस्म” का भी विरोध किया जो कि क्रिश्चयन मान्यता है। इसके अनुसार भगवान तीन व्यक्तियों में ही मिलता है गॉड, सन ( पुत्र ) जीसस और होली स्पिरिट। इन्होंने विभिन्न धर्मों के पूजा के तरीकों और बहुदेव वाद का भी विरोध किया।  एक ही भगवान हैं इस बात के ये पक्षधर थे। इन्होंने लोगों को अपनी तर्क शक्ति और विवेक को विकसित करने का सुझाव दिया। इस सन्दर्भ में उन्होंने इन शब्दों से अपना पक्ष रखा —  *“मैंने पूरे देश के दूरस्थ इलाकों का भ्रमण किया है और मैंने देखा कि सभी लोग ये विश्वास करते हैं कि एक ही भगवान हैं जिससे दुनियाँ चलती है”*। इसके बाद उन्होंने आत्मीय सभा बनाई जिसमें उन्होंने धर्म और दर्शन-शास्त्र पर विद्वानों से चर्चा की।
         *महिलाओं की वैचारिक स्वतन्त्रता*  
राजा राममोहन रॉय ने महिलाओं की स्वतन्त्रता की वकालत भी की। समाज में महिला को उपयुक्त स्थान देने के पक्षधर थे । सती प्रथा के विरोध के साथ ही इन्होंने विधवा विवाह के पक्ष में भी अपनी आवाज़ उठाई । इन्होंने यह भी कहा कि बालिकाओं को भी बालकों के समान ही अधिकार मिलने चाहिए।  इसके लिये ब्रिटिश सरकार को भी मौजूदा कानून में परिवर्तन करने को कहा। महिला शिक्षा के भी पक्षधर थे इसलिये इन्होंने महिलाओं को स्वतंत्र रूप से विचार करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने हेतु प्रेरित किया।
                  *जातिवाद का विरोध* 
भारतीय समाज का जातिगत वर्गीकरण उस समय तक पूरी तरह से बिगड़ चुका था। यह कर्म-आधारित ना होकर वर्ण-आधारित हो चला था जो कि क्रमश: अब तक जारी है । फिर भी इनका नाम उन समाज-प्रवर्तकों में शामिल है जिन्होंने जातिवाद के कारण उपजी असमानता का विरोध करने की शुरुआत की। इन्होंने कहा कि हर कोई परम पिता परमेश्वर का पुत्र या पुत्री है ऐसे में मानव में कोई विभेद नहीं है । समाज में घृणा और शत्रुता का कोई स्थान नहीं है । सबको समान हक मिलना चाहिये। ऐसा करने के कारण ये सवर्णों की आँख में खटकने लगे। 
                   *सामजिक पुनर्गठन* 
  उस समय बंगाली समाज बहुत सी कुरीतियों का समाना कर रहा था। यह सच है कि भारत में उस समय सबसे शिक्षित और सम्भ्रान्त समाज बंगाली वर्ग को ही कहा जाता था क्योंकि तब साहित्य और संस्कृतियों के संगम का दौर था जिसमें बंगाली वर्ग सबसे आगे रहता था। लेकिन फिर भी वहाँ कुछ अंधविश्वास और कुरीतियाँ थी जिन्होंने समाज के भीतर गहरी जड़ों तक अपनी जगह बना रखी थी। इन सबसे विचलित होकर ही राजा राममोहन राय ने समाज के सामाजिक-धार्मिक ढाँचे को पूरी तरह से बदलने का मन बनाया। और इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने ना केवल ब्रह्म समाज और एकेश्वरवाद जैसे सिद्धांत की स्थापना की बल्कि सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद, दहेज़ प्रथा, बीमारी का इलाज और बहुविवाह के खिलाफ भी जन-जागृति की मुहीम चलाई।
  *राजा राममोहन रॉय द्वारा लिखित पुस्तकें*
   राजा राममोहन राय ने इंग्लिश, हिंदी, पर्शियन और बंगाली भाषाओं में पत्रिकायें भी प्रकाशित करवायी थी। 1815 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की जो की ज्यादा समय तक नहीं चला । उन्होंने हिन्दू धर्म के साथ क्रिश्च्निटी में भी जिज्ञासा और जागरूकता पैदा की। उन्होंने ओल्ड हरब्यू और न्यू टेस्टामेंटस का अध्ययन भी किया ।
1820 में उन्होंने एथिकल टीचिंग ऑफ़ क्राइस्ट भी पब्लिश किया जो की 4 गोस्पेल का एक अंश था । ये उन्होंने प्रीसेप्ट्स ऑफ़ जीसस के नाम के टाइटल से प्रकाशित करवाया था ।
   उस समय कुछ भी पब्लिश करवाने से पहले अंग्रेजी हुकुमत से आज्ञा लेनी पड़ती थी। लेकिन राजा राममोहन राय ने इसका विरोध किया । उनका मानना था कि न्यूज़ पेपर में सच्चाई को दिखाना चाहिए और यदि सरकार इसे पसंद नहीं कर रही तो इसका यह मतलब नहीं बनता कि वह किसी भी मुद्दे को दबा दे । *अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुखर पक्षधर रहे राजा राममोहन रॉय ने कई समसामयिक पत्रिकायें पब्लिश  करवाई थी।
1816 में राममोहन की इशोपनिषद,1817 में कठोपनिषद,1819 में मूंडुक उपनिषद के अनुवाद आये थे। इसके बाद उन्होंने गाइड टू पीस एंड हैप्पीनेस, 1821 में उन्होंने एक बंगाली अखबार सम्बाद कुमुदी में भी लिखा था। इसके बाद 1822 में मिरत-उल-अकबर नाम के पर्शियन journal में भी लिखा था। 1826 मे उन्होंने गौडिया व्याकरण,1828 में ब्राह्मोपासना और 1829 में ब्रहामसंगीत और 1829 में दी युनिवर्सल रिलिजन लिखा था।
            *राजा राममोहन राॅय की मृत्यु*
  1830 में राजा राम मोहन राॅय अपनी पेंशन और भत्ते के लिये मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत बनकर यूनाइटेड किंगडम गये थे। वहीं 27 सितम्बर 1833 को स्टाप्लेटोन, ब्रिस्टल में मेनिंजाईटिस के कारण उनका देहांत हो गया था।
        *राजा राम मोहन राॅय और उन्हें मिले सम्मान*
   उन्हें मुगल साम्राज्य के सम्राट अकबर द्वितीय ने 1829 में  “राजा” की उपाधि दी थी। वे जब उनका प्रतिनिधि बनकर इंगलैंड गए तो वहाँ के राजा विलियम चतुर्थ ने भी उनका हार्दिक अभिनंदन किया ।
उनके वेदों और उपनिषद के संस्कृत से हिंदी, इंग्लिश और बंगाली भाषा में अनुवाद के लिये फ्रेंच Société Asiatique ने भी उन्हें 1824 में सम्मानित किया गया था।
     Remembering Indian religious, social and educational reformer, "The Father of the Indian Renaissance"* *Shri RAJA RAM MOHAN ROY* on his Birth Anniversary today. 
   *Raja Ram Mohan Roy challenged traditional Hindu culture and indicated the lines of progress for Indian society under British rule. He was the founder of the Brahmo Sabha movement in 1828, which engendered the Brahmo Samaj, an influential Bengali socio-religious reform movement against Brahminsm. His influence was apparent in the fields of politics, public administration and education as well as religion. He is best known for his efforts to establish the abolishment of the practice of Sati, the Hindu funeral practice in which the widow was compelled to sacrifice herself in her husband’s funeral pyre and Child Marriage.* What is not so well known is that Roy protested against the East India Company's decision to support vernacular education and insisted that English replace Sanskrit and Persian in India. It was he who first introduced the word "Hinduism" into the English language in 1816. For his diverse activities and contributions to society, Raja Ram Mohan Roy is regarded as one of the most important and contentious figures in the Bengali renaissance. His efforts to protect Hinduism and Indian rights and his closeness with the British government earned him the title *"The Father of the Indian Renaissance".* The British government has named a street in memory of Ram Mohan Roy as "Raja Rammohan Way"

हर पत्थर पर एहसासों की रेशम मढ़ने निकले हैं।
दिल की गुन गुन करती दिलकश धड़कन पढ़ने निकले हैं।।

आओ अपना पागलपन ले साथ हमारे आ जाओ।
हम दीवाने प्यार की एक दुनियाँ गढ़ने निकले हैं।।

🙏  🌹  📘   ✍️   📘  🌹  🙏


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